एक माँ की कहानी, जो टूट कर भी बच्चों के लिए मजबूत बनी रही
कहते हैं माँ भगवान का रूप होती है, लेकिन जब ज़िन्दगी हर तरफ से तोड़ दे और फिर भी माँ मुस्कुराकर बच्चों के लिए खड़ी रहे — तब समझ आता है कि माँ सिर्फ ममता नहीं, एक मिशाल होती है।
ये कहानी है मनीषा परदेशी जी की है, एक माँ जिसने अकेले तीन बच्चों की परवरिश की — प्रियंका, भावना और एक छोटा बेटा, जब उनका पति तीनों बच्चों को और पत्नी को छोड़कर चला गया।
तब प्रियंका सिर्फ 7 साल की थी, भावना 5 साल की और सबसे छोटा बेटा केवल 3 साल का। माँ के कंधों पर जिम्मेदारियों का पहाड़ था और साथ में था अकेलापन,
समाज की बातें और आर्थिक तंगी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। लोगों ने ताने मारे, रास्ते में कांटे बिछाए — मगर माँ ने बच्चों को स्कूल भेजा, पढ़ाया, हर कमी को खुद झेलकर उन्हें कभी कमी महसूस नहीं होने दी।
20 मई 2025: उस माँ का सपना पूरा हुआ
कई सालों की मेहनत, आंसुओं और संघर्ष के बाद वह दिन आया — जब उनकी बड़ी बेटी प्रियंका भगवान परदेशी की शादी तय हुई। लड़का राजगुरुनगर के राक्सेवाड़ी से है। पूरी शादी परिवार की खुशियों और रस्मों के साथ 20 मई को संपन्न हुई।
शादी में हर कोई खुश था, लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि एक पल ऐसा भी आएगा जो सबकी आँखों को नम कर देगा।
Mehndi की रात: जब छोटी बहन ने इक बड़ा काम कर दिया
शादी से एक दिन पहले Mehndi का कार्यक्रम था। सबने सोचा ये एक सामान्य रस्म होगी, हँसी-ठिठोली होगी — लेकिन तभी छोटी बहन भावना स्टेज पर आई।
उसने एक गाने पर एक्टिंग की — वो गाना कोई आम गीत नहीं था, वो उनके जीवन की सच्चाई थी। उस गाने में वो पल था जब तीनों बच्चे पिता के बिना माँ के साथ बड़े हुए। वो
लाइनें थी...
"मेरी बहना ... पापा के लिए छुप-छुप के रो जाती थी..."
पूरा माहौल सन्न हो गया। रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी — हर किसी की आँखें भर आईं। सब समझ गए कि ये सिर्फ Mehndi नहीं थी, ये उन सालों का दर्द और माँ के संघर्ष की सच्ची कहानी थी।
भावना की परफॉर्मेंस ने क्या सिखाया?
भावना की उस प्रस्तुति ने दिखाया कि
बच्चे सब कुछ महसूस करते हैं।
माँ के संघर्ष कभी बेकार नहीं जाते।
और कि प्यार, अपनापन और परिवार की भावनाएं हर रिश्ते से ऊपर होती हैं।
एक माँ जिसने कभी हार नहीं मानी
मनीषा परदेशी जी ने जो किया, वो हर उस महिला के लिए प्रेरणा है जो अकेले बच्चों की जिम्मेदारी उठाती है।
उन्होंने समाज की परवाह नहीं की।
खुद मेहनत की, काम किया, घर-घर जाकर काम करके बेटियों को स्कूल और कॉलेज तक पहुँचाया।
और आज जब प्रियंका की शादी अच्छे घर में हुई, तो उनका सपना पूरा हुआ।
इस कहानी से हम क्या सीख सकते हैं?
कभी हार मत मानो: हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हो, अगर इरादा सच्चा हो तो मंज़िल जरूर मिलती है।
माँ की ममता सबसे बड़ी ताकत होती है।
बच्चे तभी मजबूत बनते हैं जब माँ हार नहीं मानती।
सच्चे इमोशन, संघर्ष और परिवार का साथ — यही ज़िन्दगी की असली पूँजी है।
अंत में एक भावुक सच्चाई
प्रियंका की शादी सिर्फ एक बेटी की विदाई नहीं थी, वो माँ के संघर्ष की जीत थी।
भावना की परफॉर्मेंस सिर्फ Mehndi का हिस्सा नहीं थी, वो उन तमाम दर्द भरे सालों की गवाही थी।
और उस दिन... हर किसी की आँखें यही कह रही थीं —
"माँ, आप सच में भगवान से कम नहीं।"
अगर आपको ये सच्ची कहानी मैं आपको प्रेरणादायक लगी हो, तो इसे जरूर शेयर करें — क्योंकि किसी माँ को आपकी ये कहानी उम्मीद दे सकती है।